Tuesday, February 2, 2010

Ravana Lifting Kailash Mountain



Ravana Holding Kailash   

Ravana after conquering Lanka went to kailasam to see Lord Siva. But he was stopped by Nandi at the gate. Ravana became furious and abused Nandi calling him a “Monkey”. Nandi then cursed him saying that he will be destroyed by an army of Monkeys. Ravana then tried lifting Mount Kailash. Lord Siva got annoyed at the arrogance of Ravana and he pressed the mountain down using his little toe. Ravana was pinned down under the mountain . To get out of the situation Ravana made a veena using his nerves as string and one of his heads as base and composed a song called “ Siva Thandava”. Siva was very pleased by Ravana’s devotion. He released Ravana from underneath the mountain by removing his toe. 

Siva Thandava Sthothram

रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्रम्
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्‌॥ १॥
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥ २॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥ ३॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥ ४॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥ ५॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
-निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरोजटालमस्तु नः ॥ ६॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥। ७॥
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्‌-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥ ८॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
-वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥ ९॥
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम्‌।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥ १०॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
-द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्‌।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः॥ ११॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥ १२॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्‌।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥ १३॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसन्ततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्‌॥ १४॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शंभुः॥ १५॥
इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं संपूर्णम्।

No comments:

Post a Comment